1 ISRO का साइकिल से चांद तक का ऐतिहासिक सफर कभी साइकिल पर रॉकेट ले जाने से शुरू हुआ था।
2 भारत दुनिया का पहला देश है जो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा है, इसलिए ये मिशन कई मायनों में स्पेशल बन जाता है।
3 इससे पहले भारत मंगल ग्रह के लिए एक आर्बिटर मिशन भेज चुका है, जो दुनिया में पहला ऐसा स्पेस मिशन था, जो अपने पहले ही प्रयास में सफल हुआ था।
4 इतना ही नहीं हाल में रूस ने भी 1600 करोड़ रुपये की लागत से तैयार ‘लुना-25’ मिशन को चांद के दक्षिण ध्रुव पर भेजा था, लेकिन वह लैंडिंग से पहले ही क्रैश कर गया. इस तरह भारत का मिशन अब चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला इकलौता मिशन है, वह महज 615 करोड़ रुपये के खर्च में।
5 साल 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) बना। यही साल 1969 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर इसरो बन गया
6 वायुमंडल की जांच के लिए बनाए गए इस साउंडिंग रॉकेट को केरल के थुंबा इक्वेटेरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन से लॉन्च किया गया था। इस रॉकेट के कई हिस्सों को साइकिल की मदद से लैंडिंग साइट तक ले जाया गया। गांव वालों से मदद ली गई और चर्च की जमीन पर रॉकेट लॉन्च हुआ।
7 इंकोस्पार को बनाने का श्रेय डॉ. विक्रम साराभाई को जाता है। स्थापना के अगले ही साल इंकोस्पार ने पहला अंतरिक्ष में जाने वाला रॉकेट लॉन्च किया।
8 इसरो ने 19 अप्रैल 1975 को अपना पहला सैटेलाइट ‘आर्यभट्ट’ लॉन्च किया। तब इसरो की मदद तत्कालीन सोवियत संघ रूस ने की थी।