जय जवान जय किसान का नारा देने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की आज 118वीं जयंती है। हर साल 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के साथ-साथ लाल बहादुर शास्त्री की जयंती भी मनाई जाती है। दोनों ही ने अपना पूरा जीवन भारत आजादी के लिए समर्पित कर दिया था।
शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी था। उनकी शादी 1928 में मिर्जापुर निवासी गणेश प्रसाद की बेटी ललिता शास्त्री के साथ संपन्न हुआ था। उनके दो बेटियां और चार बेटे है। शास्त्री जी भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे ये तो सब जानते है, लेकिन वह एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे ये बहुत कम लोग जानते हैं।
शास्त्री जी देश को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए 1920 में आजादी के लड़ाई में शामिल हुए थे। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम के कई आंदोलनों में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन आंदोलनों में मुख्य रूप से 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च और 1942 का अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन शामिल है।
“श्रीवास्तव” से “शास्त्री” बनने की कहानी
शास्त्री जी के पिता की मौत बचपन में ही हो गई थी, जिसकी वजह से वे अपनी मां के साथ ननिहाल मिर्जापुर चले गए थे। यहीं पर उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की थी। उस समय उन्होंने पढ़ाई करने के लिए काफी कठिन परिस्थितियों का सामना किया था। बताया जाता है कि वह रोज नदी तैरकर स्कूल जाते थे, क्योंकि उस वक्त बहुत कम गांवों स्कूल हुआ करते थे। उन्होंने 12 साल की उम्र में ही जाति-व्यवस्था का विरोध करना शुरू कर दिया था। यही कारण है कि उन्होंने अपना उपनाम ‘श्रीवास्तव’ छोड़ दिया था। उसके बाद जब उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन पूरी की तो उन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि से सम्मानित किया गया, जिसका अर्थ है विद्वान। उसके बाद से उन्हें लाल बहादुर शास्त्री कहकर बुलाया जाने लगा।
उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन बहुत कम उम्र में ही पूरी कर ली थी। उसके बाद महज 16 साल की उम्र अपनी पढ़ाई छोड़ दी और गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए।
आजादी के बाद शास्त्री जी का पहला मंत्रालय
आजादी के बाद शास्त्री जी को पुलिस और परिवहन मंत्रालय सौंपा गया। उन्हीं के कार्यकाल के दौरान पहली बार महिला कंडक्टरों की नियुक्ति की गई थी। इतना ही नहीं उन्होंने ही भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठी-डंडों के बजाय पानी के जेट के इस्तेमाल का सुझाव दिया था। उस दौरान उनके पास सरकार की तरफ से दी गई शेवरले इम्पाला कार हुआ करती थी, जिसका इस्तेमाल वह आधिकारिक उपयोग के लिए किया करते थे। एक बार उनके बेटे ने बताया था कि उन्होंने एक बार ऑफिशियल कार का इस्तेमाल किया था। लेकिन जैसे ही शास्त्री जी को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने ड्राइवर से पूछा कि इस कार का निजी इस्तेमाल कितनी दूरी तक किया गया है। उसके बाद उन्होंने सरकारी खाते में इसके पैसे जमा करवाए थे।
उसके बाद उन्हें 1952 में रेल मंत्री बना दिया गया। लेकिन उन्होंने 1956 में तमिलनाडु में एक ट्रेन दुर्घटना के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।