वोट डालने के दौरान मतदाताओं की उंगली पर नीले रंग की स्याही लगाई जाती है। वैसे ऐसा इसलिए किया जाता है कि कोई भी वोटर दो बार वोट नहीं डाल सके। आपके मन में सवाल उठता होगा कि आखिर इस स्याही का रंग नीला क्यों होता है? इस स्याही में ऐसा क्या खास होता है जिससे यह उंगली पर लगने के बाद जल्दी नहीं छूटती है।
यह स्याही भारत में सिर्फ एक ही कंपनी बनाती है। दक्षिण भारत में स्थित मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड नाम की कंपनी इस स्याही को बनाती है। जानकारी के मुताबिक इस कंपनी की स्थापना 1937 में उस समय मैसूर प्रांत के महाराज नलवाडी कृष्णराजा वडयार ने की थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कंपनी इस चुनावी स्याही को थोक में नहीं बेचती है। एमवीपीएल के ज़रिए सरकार या चुनाव से जुड़ी एजेंसियों को ही इस स्याही की सप्लाई की जाती है। कंपनी की मुख्य पहचान इस स्याही को लेकर ही है। इसे लोग इलेक्शन इंक या इंडेलिबल इंक के नाम से जानते हैं।
इस नीले रंग की स्याही को भारतीय चुनाव में शामिल करने का श्रेय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है। साल 1962 के चुनाव से इस स्याही का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह कंपनी भारत के अलावा कई दूसरे देशों में भी चुनावी स्याही की सप्लाई करती है। एक बार लगने के बाद 40 सेकेंड में ही यह स्याही सूख जाती है।
दरअसल इस इंक को बनाने में सिल्वर नाइट्रेट केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। इसी वजह से यह एक बार त्वचा के किसी भी हिस्से में लगने के बाद कम-से-कम 72 घंटे तक त्वचा से मिटाया नहीं जा सकता। सिल्वर नाइट्रेट केमिकल को इसलिए इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यह पानी के संपर्क में आने के बाद काले रंग का हो जाता है और मिटता नहीं है। जब आप वोट डालने जाते हैं तो इसे उंगली पर लगाया जाता है। सिल्वर नाइट्रेट हमारे शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाता है। सिल्वर क्लोराइड पानी घुलता नहीं है और त्वचा से जुड़ा रहता है। इसे साबुन से धोया नहीं जा सकता। एक बार लगने के बाद यह तभी निकलता है जब त्वचा के सेल पुराने हो जाते हैं और वह उतरने लगते हैं।