Jammu and Kashmir News: जम्मू और कश्मीर की सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान में एक नया दौर देखने को मिल रहा है। 2019 के बाद केंद्र सरकार के प्रयासों से जम्मू के कई उत्पादों को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग प्राप्त हुए हैं, जिसने स्थानीय धरोहर को वैश्विक पहचान दिलाई और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा दिया है। इन उत्पादों ने न केवल अपनी विशिष्टता को बरकरार रखा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी धूम मचा दी है।
कठुआ-बसोहली पेंटिंग्स और पश्मीना: शिल्प की पुनरुद्धार
कठुआ की बसोहली पेंटिंग्स और पश्मीना ने अपनी प्राचीन कला को फिर से जीवन में लाया है। बसोहली पेंटिंग्स की रंगीन और जटिल डिजाइनों ने देशभर में नई पहचान पाई है। जीआई टैग्स ने इस कला को स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पहचान दिलाई है। बसोहली पश्मीना अपनी बेहद नरमी, बारीकी और पंख जैसी हल्केपन के लिए मशहूर है।
भद्रवाह-राजमा: खेती की नयी पहचान
भद्रवाह राजमा, एक प्रकार की लाल किडनी बीन्स, को 2023 में GI टैग मिला। इस लोकप्रिय क्षेत्रीय उत्पाद को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के लिए नाबार्ड की मदद से यह टैग प्रदान किया गया।
राजौरी-चिकरी लकड़ी की कला: धरोहर की फिर से खोज
राजौरी की चिकरी लकड़ी की कला, जो वर्षों से अंधेरे में थी, अब GI टैग की बदौलत फिर से जीवंत हो रही है। यह पारंपरिक शिल्प, जो अपनी बारीकी और जटिल डिजाइनों के लिए जानी जाती है, अब वैश्विक बाजारों में अपना स्थान बना रही है।
रामबन-सुलाई हनी: प्रकृति की मिठास
रामबन का शहद, जो अपने खास स्वाद, खुशबू और मिठास के लिए जाना जाता है, इस इलाके की अनमोल धरोहर है। इसे सुलाई हनी के नाम से भी पहचाना जाता है और यह बेहद पौष्टिक होता है, जिसमें ताकतवर एंटीऑक्सीडेंट और इम्यूनिटी बढ़ाने वाले गुण होते हैं। इस शहद का उत्पादन सुलई के सफेद फूलों से अगस्त से अक्टूबर के बीच किया जाता है, जब मधुमक्खियाँ इन फूलों के रस पर निर्भर होती हैं। इसका स्वाद प्राकृतिक मिठास और हल्के फूलों के स्वाद से भरा होता है।
आरएस पुरा-बासमती चावल: गर्व और समृद्धि
जनवरी 2024 में, APEDA ने जम्मू और कश्मीर में बासमती चावल के लिए पहला GI टैग सर्वेश्वर फूड्स लिमिटेड को प्रदान किया। यह कंपनी इस क्षेत्र की पहली और एकमात्र कंपनी है जिसे निर्यात के लिए बासमती चावल का GI टैग मिला है।
उधमपुर-कलाड़ी: डोगरा चीज़ का विश्व पटल पर उदय
उधमपुर की गलियों में मिलने वाली कलाड़ी अब सिर्फ एक स्ट्रीट फूड नहीं रही, बल्कि डोगरा संस्कृति की पहचान बन गई है। जीआई टैग ने इस चीज़ को एक नए आयाम पर पहुंचा दिया है।
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