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दुनिया में केवल यहीं विराजमान हैं भगवान गणेश की जुड़वा मूर्तियां, विदेशों से भी आते हैं श्रद्धालु

दुनिया में केवल यहीं विराजमान हैं भगवान गणेश की जुड़वा मूर्तियां, विदेशों से भी आते हैं श्रद्धालु

 

Famous Temple Lord Ganesha: आपने भगवान गणेश के बहुत से मंदिरों के दर्शन किए होंगे जिनमें मुंबई का प्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर, व पूणे का दगडूशेठ गणपति मंदिर जरुर शामिल होगा, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जिनके बारे में शायद ही आपने किसी से इस मंदिर का जिक्र सुना होगा। यह मंदिर छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के बारसूर ग्राम में स्थित है। इस मंदिर को बारसूर गणेश मंदिर के नाम से जाना जाता है।इस मंदिर में स्थापित गणेश की मूर्ति के लिए कहा जाता है पूरे विश्व में केवल बारसूर में ही भगवान गणेश की जुड़वा प्रतिमा है, जिसे देखने केवल देश से ही नही बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं। चलिए विस्तार से जानते हैं इस मंदिर के बारे में...

भगवान गणेश का अनोखा मंदिर 

-यह मंदिर 11वीं शताब्दी में छिंदक नागवंश  के राजा बाणासुर ने स्थापित किया था, जहां भगवान गणेश की विश्व की तीसरी सबसे बड़ी प्रतिमा स्थित है। कहा जाता है पूरे विश्व में केवल बारसूर में ही भगवान गणेश की जुड़वा प्रतिमा है, जिसे देखने केवल देश से ही नही बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं।
-तेवाड़ा शहर से करीब 31 कि.मी दूर और छत्तीसगढ़ की राजधानीह रायपुर से करीब 390 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर स्थित है।
- देवनगरी बारसूर, जिसे देव नगरी के नाम से जाना जाता है। इस नगर को देवनगरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां पर रियासत काल में 147 तालाब और 147 मंदिर हुआ करते थे, जो अपने आप में ऐतिहासिक है।
- भगवान गणेश की विशाल प्रतिमा साढ़े 7 फीट ऊंची है तथा दूसरी प्रतिमा साडे साढ़े 5 फीट ऊंची है। यह दोनों मूर्तियां मोनोलिथिक है, यानि कि एक चट्टान को बिना कांटे-छांटे और बिना जोड़े-तोड़े बनाई गई मूर्तियां हैं।
- यह दोनों मूर्तियां बालू यानि रेत के चट्टानों से बनाई गई है। 

इस मंदिर के पीछे एक पौराणिक मान्यता भी जुड़ी हुई है। वह ये है कि इस मंदिर का निर्माण राजा बाणासुर ने करवाया था। राजा की पुत्री और उसकी सहेली दोनों भगवान गणेश की खूब पूजा करती थी। लेकिन इस इलाके में दूर तक कोई गणेश मंदिर नहीं था। इस वजह से राजा की पुत्री को गणेश जी की आराधना के लिए दूर जाना पड़ता था। राजा ने अपनी पुत्री के कहने पर इस मंदिर का निर्माण कराया था। कहा जाता है कि गणपति उषा और चित्रलेखा की साधना से प्रसन्न हुए थे और तब से यहां आने वाले अपने सभी भक्तों की हर कामना पूरी करते हैं।


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