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ज्ञानवापी मामले में हो रही है कार्बन डेटिंग की मांग, जानें क्या और कैसे होती है कार्बन डेटिंग

ज्ञानवापी मामले में हो रही है कार्बन डेटिंग की मांग, जानें क्या और कैसे होती है कार्बन डेटिंग

 

वाराणसी (Varanasi) की जिला कोर्ट आज ज्ञानवापी मामले (Gyanvapi Case) में कार्बन डेटिंग की मांग पर फैसला आ सकता है। हिंदू पक्ष की ओर से ज्ञानवापी परिसर के वजू खाने में सर्वे के दौरान मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग (Carbon Dating of Shivling) याचिका कोर्ट में दाखिल की गई थी। हिंदू पक्ष द्वारा यह मांग की गई है कि कोई भी वैज्ञानिक पद्धति द्वारा जिससे शिवलिंग को नुकसान ना हो, उससे जांच कराई जाए। क्या आप जानते है कि कार्बन डेटिंग क्या होती है। यदि नहीं तो हम आपको बताने जा रहे है कि कार्बन डेटिंग क्या होती है।

जानें क्या होती है कार्बन डेटिंग? (Know what is carbon dating?)
कार्बन डेटिंग का इस्तेमाल किसी भी वस्तु की उम्र का पता लगाने के लिए किया जाता है। इस तकनीक का आविष्कार शिकागो यूनिवर्सिटी के बिलियर्ड लिबी और उनके साथियों ने 1949 में किया था। उन्हें इस काम के लिए 1960 में रसायन का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) भी दिया गया। इस तकनीक से वैज्ञानिक हड्डी, चमड़े, बाल, फर, सींग, लकड़ी, चारकोल, बीज, बीजाणु, पराग या रक्त अवशेष, पत्थर और मिट्टी आदि से भी उसकी वास्तविक आयु का पता लगा सकते हैं। जिस चीज में भी कार्बन की मात्रा होती है। इस तकनीक से उन सभी की उम्र का पता लगाया जा सकता है।

जानें कैसे होती है कार्बन डेटिंग? (Learn how carbon dating is done?)
वायुमंडल में कार्बन के तीन तरह के आइसोटोप कार्बन- 12, कार्बन- 13 और कार्बन- 14 पाए जाते हैं। कार्बन डेटिंग के द्वारा कार्बन-12 से कार्बन-14 के बीच का अनुपात निकाला जाता है। जब किसी जीव की मृत्यु हो जाती है तो ये उस वक्त वातावरण से कार्बन का आदान प्रदान बंद कर देते हैं। इसी अंतर के आधार पर किसी भी अवशेष की उम्र पता लगाया जाता है। बता दें कि कार्बन डेटिंग की मदद से सिर्फ 50 हजार साल पुराने अवशेष का ही पता लगाया जा सकता है।

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