उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक कार्यक्रम के दौरान सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रंजन गोगोई ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि राम जन्मभूमि पर दिया गया फैसला उनका नहीं था। गोगोई श्री करपात्री धाम में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि राम जन्मभूमि का फैसला उनका अपना नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वाराणसी में एक कार्यक्रम के दौरान पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि यह फैसला धर्म के आधार पर नहीं बल्कि कानून के आधार पर लिया गया था। न्याय का धर्म और भाषा संविधान है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि न्याय कभी धर्म नहीं देखता है, ना भाषा होती है और न ही उसकी कोई जाति है। न्याय का धर्म और भाषा सिर्फ संविधान है। उसकी के आधार पर यह फैसला दिया गया था। फैसला मेरा नहीं बल्कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय का था।
उन्होंने कहा कि ये फैसला तीन-चार महीने की सुनवाई के बाद पांच जजों ने बैठकर 900 पेज लिखा गया था और उसके बाद सभी की एक राय होने पर ही सुनाया गया था। यह फैसला एक राय था, इसमें को दो राय नहीं है। न्यायाधीश हजारों मामलों का फैसला करते हैं। इसका परिणाम एक पार्टी के पक्ष में जाता है, फिर दूसरी पार्टी के विरोध में।
लेकिन उस न्यायाधीश का किसी पार्टी से कोई लेना देना नहीं होता है। कानून की सभी प्रक्रियाओं समझकर ही यह फैसला दिया गया था। जानकारी के लिए बता दें कि राम मंदिर का ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने 9 नवंबर 2019 को राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया था। हिंदू पक्ष के मुताबिक, 1528 में मुगल बादशाह बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया था।
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