Happy Baisakhi 2023: बैसाखी का त्योहार हर साल अप्रैल के महीने में आता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार अप्रैल का महीना वैशाख का होता है, इसलिए इस त्योहार को बैसाखी कहते हैं। यह त्योहार कृषि से जुड़ा है। इस महीने में रबी की फसल पककर पूरी तरह से तैयार हो जाती है और उनकी कटाई भी शुरू हो जाती है। मान्यता है कि इस दिन सिखों के दसवें और आखिरी गुरु गोविंद सिंह ने 1699 को खालसा पंथ की स्थापना की थी।
इसके अलावा बैसाखी के दिन महाराजा रणजीत सिंह को सिख साम्राज्य का प्रभार सौंपा गया था, इन्होंने एकीकृत राज्य की स्थापना की थी। इसलिए सिख धर्म के लोग इस दिन को नव वर्ष के रूप में मनाते हैं। इस दिन लोग नए-नए कपड़े पहनते हैं और गुरूद्वारे में जाकर पूजा करते हैं। कई जगहों पर लंगर का आयोजन भी किया जाता है। यह पर्व कई मान्यताएं और परंपराओं के साथ-साथ खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक भी है। इसलिए इस पर्व का महत्त्व और बढ़ जाता है। बैसाखी के मौके पर लोग अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और प्रियजनों से मिलते हैं और कई तरह के मिष्ठान और पकवान बनाते हैं।
इसलिए बढ़ जाता है Baisakhi का महत्त्व
- बैसाखी पर्व को फसल उत्सव और सिख नव पर्ष के रुप में भी मनाया जाता है। इस पर्व को वैसाखी या बसोरा भी कहा जाता है।
- बैसाखी को सिख समुदाय का सबसे महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाया जाता है।
- बैसाखी के समय आकाश में Visakha Nakshatra होता है। विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैशाख कहते हैं।
-बैसाखी के दिन तीर्थ स्नान-दान और सूर्य देव को अर्घ्य देने से सुख और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करेंगे, इसे मेष संक्रांति मनाई जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन से सौरवर्ष का आरंभ होता है।
-बैसाखी के दिन सूर्य मेष राशि में आते हैं। ज्योतिषशास्त्र में मेष राशि को अग्नि तत्व की राशि कहा गया है और सूर्य भी अग्नि तत्व के ग्रह हैं। ऐसे में जब मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तो गर्मी तेजी से बढ़ने लगती है।
-ऐसे में स्वास्थ्य की रक्षा के लिए शरीर को ठंडक प्रदान करने वाली चीजों का दान किया जाता है, ताकि जिनके पास साधनों की कमी है वह भी उन चीजों का सेवन करके अपनी सुरक्षा कर पाएं। यही वजह है कि बैसाख और ज्येष्ठ महीने में हिंदू धर्म में शीतलता प्रदान करने वाली चीजों को दान करने की बात बतायी गई है।
- यही वजह है कि बिहार सहित कई क्षेत्रों में इस दिन सत्तू खाने और दान करने की परंपरा रही है। ज्योतिषीय दृष्टि से चने की सत्तू का संबंध सूर्य, मंगल और गुरु से भी माना जाता है।
-इसलिए कहते हैं कि, सूर्य के मेष राशि में आने पर सत्तू और गुड़ खाना चाहिए और इनका दान भी करना चाहिए। जो इस दिन सत्तू खाते हैं और इनका दान करते हैं वह सूर्य कृपा का लाभ पाते हैं।
- पूरे भारत में इस दिन को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, जैसे-बंगाल में New year, केरल में Pooram Vishu , असम में Bihu के नाम से लोग इस पर्व को मनाते हैं।
- पंजाब में लोग इस दिन को गुरुद्वारे जाकर गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ व कीर्तन करके मनाते हैं और नृत्य भांगड़ा करके खुशी मनाते हैं।
- मान्यता है कि इस दिन जन सेवा करने से घर में बरकत बनी रहती है और दरिद्रता दूर होती है। इसलिए इस दिन जरुरतमंदों को फसल का थोड़ा हिस्सा दान किया जाता है,गरीबों में खीर और शरबत बांटें जाते हैं।
-मेष संक्रांति पर गंगा स्नान, जप-तप दान आदि का विशेष महत्व है। साथ ही इस दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा भी की जाती है और कथा भी सुनी जाती है, जिसमें सत्तू का भोग लगाया जाता है और घर-घर प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है।
-बैसाखी पर गंगा स्नान करने के बाद नई फसल कटने की खुशी में सत्तू और आम का टिकोला खाया जाता है। इस दिन घरों में खाना नहीं पकाया जाता बल्कि सिर्फ सत्तू का ही सेवन करते हैं।
-इस दिन सत्तू के साथ मिट्टी के घड़े, तिल, जल, जूते आदि चीजों का भी दान किया जाता है।
-बिहार में इस शुभ दिन पर ककोलत जलप्रपात में स्नान करने का विशेष महत्व है।
-मान्यता है कि मेष संक्रांति पर इस जल में स्नान करने से कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है और गिरगिट व सर्प योनी में जन्म नहीं लेना पड़ता।