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पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में ‘One Nation One Election’के लिए कमेटी का ऐलान

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में ‘One Nation One Election’के लिए कमेटी का ऐलान

 

One Nation One Election:केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ रोविंद की अध्यक्षता में एक देश एक चुनाव को लेकर कमेठी गठित कर दी है। बताया जा रहा है कि इसके लिए सरकार आज अधिसूचना जारी कर सकती है।

 

बता दें कि कल शाम संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी के एक ट्वीट कर हलचल मचा दी। ट्वीट में उन्होंने जानकारी दी कि 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि सत्र बुलाया किस लिए जा रहा है। बस इसी वजह से कल से ही अटकलों का बाज़ार गर्म हो गया। 

यह है सत्र बुलाने की प्रकिया
यूं तो नियमों के अनुसार एक साल में संसद के 3 सत्र होते हैं। बजट, मानसून और शीतकालीन। एक बैठक के बीच 6 महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए। यानि संसद के 2 सत्रों के बीच 6 महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए। यहीं नियम राज्य की विधानसभाओं के लिए भी लागू होता है। मानसून सत्र 20 जुलाई से 11 अगस्त तक चला। विशेष सत्र मानसून सत्र के 37 दिन बाद आयोजित हो रहा है। शीतकालीन सत्र नवंबर के आखिरी सप्ताह में शुरू होगा।

हालांकि कयास लगाए जा रहे थे कि इस सेशन में 10 से ज़्यादा विधेयक पेश किए जा सकते हैं। हालांकि मामला सामान्य बिल का तो नहीं होगा, क्योंकि ऐसे किसी बिल के लिए संसद का सत्र बुलाने की ज़रूरत नहीं। माना जा रहा है कि इस सत्र में सरकार एक चुनाव पर बिल भी ला सकती है। केंद्र द्वारा बनाई गई कमेटी एक देश एक चुनाव के कानूनी पहलुओं पर विचार करने के साथ देश में आम लोगों से भी राय लेगी।

 

सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है इस बिल की टाइमिंग को लेकर। दरअसल, इस साल के आखिर में ही राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में कयास लगाए जाने लगे कि क्या केंद्र सरकार पहले आम चुनाव करा सकती है। इस बात की चर्चा सियासी गलियारों में जोरों पर उठी कि मोदी सरकार इस बार दिसंबर में ही आम चुनाव करा सकती है। इसे बल तब मिला, जब पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी इस पर बात की।

क्या है एक देश एक चुनाव ? One Nation One Election

एक देश एक चुनाव पहले भी हो चुका है। दरअसल 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ ही लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव कराए गए थे। इसके बाद यह क्रम टूट गया। वजह रही कि कुछ राज्यों की विधानसभा को समय से पहले भंग कर दिया गया। इसके बाद अगला लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गया। यानी, अगर पहले ऐसा हो चुका है, तो अब भी हो सकता है।

लेकिन, विरोध करने वालों का तर्क है कि अगर लोकसभा के साथ ही राज्यों के चुनाव हुए, तो स्थानीय मुद्दे दब जाएंगे। आम चुनावों में बात राष्ट्रीय मुद्दों की होती है, जनता भी उस चेहरे पर दांव लगाती है, जो विश्व मंच पर देश का सही प्रतिनिधित्व कर सके। दूसरी ओर, विधानसभा चुनावों में बात होती है सड़क, सीवर, बिजली जैसे लोकल इश्यूज की। अगर दोनों चुनाव साथ हुए, तो स्थानीय मुद्दे दब जाएंगे।

एक साथ चुनाव कराने की स्थिति में कुछ राज्यों में समय से पहले इलेक्शन कराने होंगे। अगर सरकार ऐसा बिल लाती है, तो हो सकता है जिन राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं, वहां से सहमति मिल जाए, लेकिन जहां विपक्ष की सरकारें हैं, क्या वहां से भी सपोर्ट मिलेगा?

बीजेपी 'एक देश एक चुनाव' के पक्ष में रही है। पीएम नरेंद्र मोदी इसकी हिमायत करते रहे हैं। इस मामले पर संसदीय समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ कम पड़ेगा। मानव संसाधन का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकेगा। जो ख़ज़ाना बचेगा, उसे विकास पर खर्च किया जा सकेगा।  


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