Tamil Nadu Diwali: तमिलनाडु के इरोड जिले के थलावडी के एक सुदूर गांव में दिवाली का जश्न, जिसे कई लोग विचित्र कहेंगे, इस तरह मनाया जाता है। लेकिन, यह उत्सव लगभग 300 साल पुराना है, जहां ग्रामीण दिवाली के त्योहार के अंत को चिह्नित करने के लिए इकट्ठा होते हैं और इसमें गोबर फेंकना शामिल है।
गांव में कई पीढ़ियों के लोग सालाना गोबर फेंकने के त्यौहार के लिए इकट्ठा होते हैं। यह 300 साल पुराना त्यौहार दिवाली के चौथे दिन बीरेश्वर मंदिर उत्सव के एक हिस्से के रूप में मनाया जाता है।
इस त्यौहार से जुड़ी एक मान्यता यह है कि कई शताब्दियों तक प्राकृतिक खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला गड्ढा ही वह स्थान था जहां एक शिवलिंग की खोज हुई थी जिसे अब बीरेश्वर मंदिर के अंदर रखा गया है। जब गोबर फेंकने की रस्म पूरी हो जाती है, तो गोबर को ग्रामीणों में बाँट दिया जाता है जो फिर इसका इस्तेमाल अपनी खेती को पोषण देने के लिए करते हैं और मानते हैं कि इससे साल भर की उपज बढ़ती है।
कर्नाटक और तमिलनाडु की सीमा पर स्थित गुमातापुरा गांव में स्थानीय लोग हर साल दिवाली के अंत में इसी तरह गोबर की लड़ाई मनाते हैं। कर्नाटक में मनाया जाने वाला यह त्यौहार ‘गोरेहब्बा’ कहलाता है। बताया जाता है कि यह सौ साल से भी ज़्यादा पुराना है।