करवा चौथ का त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है। साथ ही अच्छे वर की कामना से अविवाहिता स्त्रियों के करवा चौथ व्रत रखने की भी परम्परा है। यह पर्व पूरे उत्तर भारत में ज़ोर-शोर से मनाया जाता है।
करवा चौथ व्रत के नियम
यह व्रत सूर्योदय से पहले से शुरू कर चांद निकलने तक रखना चाहिए और चन्द्रमा के दर्शन के पश्चात ही इसको खोला जाता है।
शाम के समय चंद्रोदय से 1 घंटा पहले सम्पूर्ण शिव-परिवार की पूजा की जाती है।
पूजन के समय देव-प्रतिमा का मुख पश्चिम की तरफ़ होना चाहिए तथा स्त्री को पूर्व की तरफ़ मुख करके बैठना चाहिए।
करवा चौथ व्रत की पूजा-विधि
सुबह सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके पूजा घर की सफ़ाई करें। फिर सास द्वारा दिया हुआ भोजन करें और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें।
यह व्रत उनको संध्या में सूरज अस्त होने के बाद चन्द्रमा के दर्शन करके ही खोलना चाहिए और बीच में जल भी नहीं पीना चाहिए।
संध्या के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना करें। इसमें 10 से 13 करवे रखें।
पूजन-सामग्री में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर आदि थाली में रखें। दीपक में पर्याप्त मात्रा में घी रहना चाहिए, जिससे वह पूरे समय तक जलता रहे।
चन्द्रमा निकलने से लगभग एक घंटे पहले पूजा शुरू की जानी चाहिए। अच्छा हो कि परिवार की सभी महिलाएँ साथ पूजा करें।
पूजा के दौरान करवा चौथ कथा सुनें या सुनाएँ।
चन्द्र दर्शन छलनी के द्वारा किया जाना चाहिए और साथ ही दर्शन के समय अर्घ्य के साथ चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए।
चन्द्र-दर्शन के बाद बहू अपनी सास को थाली में सजाकर मिष्ठान, फल, मेवे, रूपये आदि देकर उनका आशीर्वाद ले और सास उसे अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दे।