दिल हूम हूम करे.. घबराए
घन धम धम करे..डर जाए
इक बूँद कभी पानी की
मोरी अंखियों से बरसाए
दिल हूम हूम करे.. घबराए
कुछ आवाजें ऐसी होती है जिन्हें सुनकर हमारा दिन बन जाता है। उन्हें अगर बरसों बाद भी सुना जाएं तो मन में ताजगी उभर आती है। ऐसी ही एक आवाज थी मशहूर सिंगर-म्यूजिशियन भूपेन हजारिका (Bhupen Hazarika) की। आज भूपेन हजारिका के 96वें जन्मदिन पर गूगल ने भी डूडल से उन्हें श्रद्धांजलि दी है। भूपेन एक मल्टी टैलेंटेड व्यक्ति थे, जो खुद ही लिखते, कंपोज करते और गाते थे। उनके गाने और संगीत हिन्दी सिनेमा में बहुत लोकप्रिय है। जिन्होंने लाखों लोगों का दिल जीत लिया था।
भूपेन हजारिका असम के बहुमुखी प्रतिभा के भारतीय गायक, संगीतकार, फिल्म निर्माता के साथ-साथ असमिया भाषा के कवि, लेखक, असम की संस्कृति के अच्छे जानकार भी थे। उनका जन्म 8 सितंबर 1926 को हुआ था। उनके पिता नीलकांत शिवसागर जिले के नजीरा कस्बे के रहने वाले थे। उनका गृह राज्य असम एक ऐसा क्षेत्र है जो हमेशा विभिन्न जनजातियों और कई स्वदेशी समूहों का घर रहा है। हजारिका ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गुवाहाटी से की थी। इसके बाद उन्होंने B.H.U से राजनीति शास्त्र की पढ़ाई की।
कॉलेज के समय से ही उनकी रुचि संगीत में थी। भूपेन को संगीत की शिक्षा बनारस में शास्त्रीय संगीत की संगत उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, कंठे महाराज और अनोखेलाल से मिली। उन्होंने अनेक फिल्मों में कई फेमस गाने देकर लोगों का दिल जीता है। जिनमें से एक फिल्म‘रूदाली’ (Rudaali) का लोकप्रिय गाना ‘दिल हूम हूम करे’ (Dil Hoom Hoom Kare) है। इसका फीमेल वर्जन लता मंगेशकर द्वारा गाया गया है। ऐसे ही कई सारे गाने है जो इनके द्बारा लोकप्रिय हुए है जैसे 'ओ गंगा बहती हो क्यों, तारों पर नजर है, दूर की मनवा' आदि। इन्होंने फिल्म "गांधी टू हिटलर" में महात्मा गांधी का पसंदीदा भजन "वैष्णव जन" भी गाया है। हजारिका को पूर्वोत्तर भारत का प्रमुख सामाजिक-सांस्कृतिक सुधारक भी कहा जाता है। इन्होंने अपने संगीत से सभी क्षेत्रों के लोगों को एकजुट करने का काम किया था। इनका 5 नवंबर 2011 को अपनी आखिरी सांस ली थी।
भारत रत्न से सम्मानित
बहुमुखी प्रतिभा के भूपेन हजारिका को उनके संगीत और संस्कृति में उनके प्रमुख योगदान के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्म श्री और पद्म भूषण जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। साथ ही साल 2019 में, उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से भी नवाजा गया।