पंजाब स्वास्थ्य विभाग ने सभी सरकारी कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों के डोप टेस्ट के लिए विधिवत एक प्रोफॉर्मा बनवाया है जिस पर औपचारिक मुहर लगनी बाकी है. सरकारी विभाग सिविल सर्जन और मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट के कर्मचारियों को डोप टेस्ट करवाने के लिए समय और तारीख दी जाएगी.
ड्रग्स टेस्ट में अगर नतीजे नेगेटिव पाए गए तो उसे अगले ही दिन उनके दफ्तर में भेज दिया जाएगा. लेकिन अगर टेस्ट में पॉज़िटिव पाया जाता है तो फिर से उसे कन्फर्म करने के लिए CFSL लेबोरटरी या PGI चंडीगढ़ भेजा जाएगा.
इस प्रोफॉर्मा का मकसद है कि डोप टेस्ट में पॉज़िटिव पाए गए कर्मचारियों को काउंसलिंग और इलाज के लिए भेजा जाए. साथ ही पॉज़िटिव पाए जाने वाले कर्मचरियों के टेस्ट के नतीजे भी गुप्त रखे जाएंगे.
मेडिकल ऑफिसर कर्मचारी की मेडिकल हिस्ट्री के आधार पर इस बात का फैसला करेगा कि वे डोप टेस्ट के लिए तैयार है या नहीं. अगर ऐसा नहीं पाया गया तो उसे वापस भेज दिए जाएगा. दोबारा उसे एक सप्ताह या मेडिकल अफसर की ओर से दी गई तारीख पर आना होगा. इस टेस्ट के लिए 1,500 रुपये बतौर फीस भी ली जाएगी.
पॉज़िटिव पाए जाने वाले कर्मचारियों पर नरम रुख अपनाते हुए सरकार ने फैसला किया है कि उसे सही सलाह और इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास भेजा जाएगा. ऐसे कर्मचारियों का नाम गुप्त रखा जाएगा और उनके विभाग द्वारा मांगे जाने पर ही बताया जाएगा. अगर कर्मचारी स्वयं ही यह मान ले कि वह ड्रग इस्तेमाल करता है तो उसे किसी डोप टेस्ट करवाने की ज़रूरत नहीं होगी. उसे सलाह और इलाज के लिए साइकेट्रिस्ट के पास सीधा ही भेज दिया जाएगा. हर स्तर पर इस जांच की गोपनीयता बनाई रखी जाएगी.
पंजाब DGP सुरेश अरोरा ने बयान जारी करके कहा कि मुख्यमंत्री की नशे के खिलाफ रणनीति से किसी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा.
इस संदर्भ में आम आदमी पार्टी और अकाली दल के नेताओं ने मुख्यामंत्री अमरिंदर सिंह को कहा था कि उन्हें सबसे पहले अपना डोप टेस्ट करवाना चाहिए. उसके बाद अपने विधायकों के भी कराने चाहिए. इस पर अमरिंदर सिंह ने पलटवार करते हुए कहा था कि वो किसी भी जांच के लिए तैयार हैं.